धान की खेती में कौन से जैव उर्वरक का प्रयोग

धान की खेती में कौन से जैव उर्वरक का प्रयोग
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प्रश्न-, धान की खेती में कौन से जैव उर्वरक का प्रयोग उपयोगी है। उत्तर-, पी0एस0बी0, नील हरित शैवाल तथा एजोला जैसे जैव उर्वरक अधिक उपयोगी होते है। 2-, प्रश्न-, जैव उर्वरक के प्रयोग में क्या करें, जिससे अधिक लाभ हो। उत्तर-, रासायनिक उर्वरकों के ...

प्रश्न. धान की खेती में कौन से जैव उर्वरक का ...
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प्रश्न. धान की खेती में कौन से जैव उर्वरक का प्रयोग उपयोगी है। प्रश्न. धान की खेती में कौन से जैव उर्वरक का प्रयोग उपयोगी है। उत्तर. पी.एस.बी., नील हरित शैवाल तथा एजोला जैसे जैव उर्वरक अधिक उपयोगी होते है। Printer-friendly version ...

जैविक खेती - विकिपीडिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/जैविक_खेती
जैविक खेती (Organic farming) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये ... कीटनाशक और खाद का प्रयोग खेती में करने से फसल जहरीला होता।

कृषि - विकिपीडिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/कृषि
आधुनिक एग्रोनोमी, पौधों में संकरण, कीटनाशकों और उर्वरकों और तकनीकी सुधारों ने फसलों से होने वाले उत्पादन को तेजी से ... 5 पशुधन उत्पादन प्रणाली; 6 उत्पादन पद्धतियां; 7 प्रसंस्करण, वितरण और विपणन; 8 फसल परिवर्तन और जैव प्रौद्योगिकी .... कृषि पद्धतियों जैसे की सिंचाई, फसल पुनरावर्तन,उर्वरकों और कीटनाशकों का विकास काफी पहले ही हो चुका था लेकिन इनमें ..... और वायुमंडल में मुक्त होने वाली अधिकांश मेथेन, गीली मिटटी जैसे धान के खेतों में, कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से आती है।

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इसके बावजूद शुष्क क्षेत्र में रहने वाले काश्तकारों को भी अच्छी पैदावार के लिए गेहूं व धान की फसल बोने के लिए प्रेरित ..... इसलिए रासायनिक उर्वरकों को थोड़ा कम प्रयोग करके बदले में जैविक खाद का प्रयोगकरके फसलों की भरपूर उपज पाई जा सकती है। ... फास्फोबैक्टीरिया और माइकोराइजा नामक जैव उर्वरकके प्रयोग से खेत में फास्फोरस की उपलब्धता में 20 से 30 प्रतिशत की ..... जो फसल खेतों में है उसकी कीटों व रोगों से रक्षा करें साथ ही साथ, इस बात का भी ध्यान रखें की अगले रबी के मौसम में कौन सी ...

उत्तर प्रदेश में धान की उन्नतशील खेती | Kisan ...
kisanhelp.in/.../उत्तर-प्रदेश-में-धान-की-उन्...
नर्सरी में खैरा रोग लगने पर जिंक सल्फेट तथा यूरिया का द्दिडकाव सफेदा रोग हेतु फेरस सल्फेट तथा यूरिया का द्दिडकाव ३ धान की रोपाई ४ रोपाई के समय संस्तुत उर्वरक का प्रयोग एवं रोपाई के एक सप्ताह के अंदर ब्यूटाक्लोर से खरपतवार ...

गेंहू की उन्नत खेती | Kisan Help Line
kisanhelp.in/organic.../गेंहू-की-उन्नत-खेती
मुख्य रूप से एशिया में धान की खेती की जाती है, तो भी विश्व के सभी प्रायद्वीपों मेंगेहूँ उगाया जाता है। ... कपास की काली मृदा में गेहूँ की खेती के लिए सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ती है। भूमि का पी. एच. मान 5 से 7.5 के बीच में होना फसल के लिए उपयुक्त रहता .... गेहूं बोआई हेतु स्थान विशेष की परिस्थिति अनुसार विधियाँ प्रयोग में लाई जा सकती हैः ... खाद एवं उर्वरक की मात्रा गेहूँ की किस्म, सिंचाई की सुविधा, बोने की विधि आदि कारकों पर निर्भर करती है। .... जैव उर्वरक क्या हैं?

जिप्सम के उत्पादन की प्रक्रिया की स्थिति ...
ydcrusher.tk/mining-HI/7962.html
ग्राम समाज एवं विकास फसल 1- प्रश्न- धान की खेती में कौन से जैव उर्वरक का प्रयोग उपयोगी है। . मिट्टी की जॉंच के बाद औसतन 150 से 250 कुन्तल प्रति हेक्टेयर जिप्सम का प्रयोग उपयोगी है। .. उत्तर- दीमक सूखे की स्थिति में जड़ों तथा फलियों को काटती ...

प्रश्नसमुच्चय--१३ - Wikibooks
https://hi.wikibooks.org/wiki/प्रश्नसमुच्चय--१३
वर्गीज कुरियन; दुग्ध उत्पादन में भारत का कौन-सा स्थान है — प्रथम; भारत में सर्वोत्तम चाय कहाँ पैदा की जाती है — .... लावा के प्रवाह से किस मिट्टी का निर्माण होता है — काली मिट्टी; कौन-सी मिट्टी जैवपदार्थों से भरपूर होती है — काली मिट्टी ... किस प्रकार की मिट्टी में जिप्सम का प्रयोग करके उसे उपजाऊ बनाया जाता है — अम्लीय मिट्टी को; किस प्रकार की म्टिटी में ... मृदा से संबंधित होती है — चेरनोजमसे; किस फसल को जलभराव की आवश्यकता होती है — चावल को; धान की खेती के लिए कौन-सी ...

Biology: eBook - Page 582 - Google Books Result
https://books.google.co.in/books?isbn=9382883037

Dr. O. P. Saxena & Megha Bansal - 2015
जैविक उर्वरकों के प्रयोग से किसानों की रासायनिक उर्वरकों के प्रति आश्रितता कम हो रही है।] जल के तीन नमूने लो-एक नदी का जल, दूसरा अनुपचारित वाहितमल जल तथा तीसरा वाहितमल उपचार सयंत्रसे निकला द्वितीयक बहि:स्राव; इन तीनों ... इन नमूनों में कौन-सा सबसे अधिक प्रदूषित नमूना है? ...धान के खेत में सायनोबैक्टीरिया महत्वपूर्ण जैव उर्वरक की भूमिका निभाते हैं।

2 comments:

  1. 1. भूरी चित्ती रोग(Brown Spot)
    रोग नियंत्रण:-

    1. बीजों को थीरम एवं कार्बेन्डाजिम (2:1) की उग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।

    रोग सहनशी किस्मों जैसे- बाला, कृष्णा, कुसुमा, कावेरी, रासी, जगन्नाथ और आई आर 36, 42, आदि का व्यवहार करें।
    रोग दिखाई देने पर मैन्कोजैव के 0.25 प्रतिशत घोल के 2-3 छिड़काव 10-12 दिनों के अन्तराल पर करना चाहिए।
    अनुशंसित नेत्रजन की मात्रा ही खेत मे डाले।
    बीज को बेविस्टीन 2 ग्राम या कैप्टान 2.5 ग्राम नामक दवा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बुआई से पहले उपचारित कर लेना चाहिए।
    खड़ी फसल में इण्डोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी मे घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव 15 दिनों के अन्तर पर करें।
    रोगी पौधों के अवशेषों और घासों को नष्ट कर दें।
    मिट्टी मे पोटाश, फास्फोरस, मैगनीज और चूने का व्यवहार उचित मात्रा मे करना चाहिए।
    2. झोंका (ब्लास्ट) रोग/ प्रध्वंस (Blast)
    रोग नियंत्रण:-

    बीज को बोने से पहले बेविस्टीन 2 ग्राम या कैप्टान 2.5 ग्राम दवा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें।
    नेत्रजन उर्वरक उचित मात्रा मे थोड़ी-थोड़ी करके कई बार मे देना चाहिए।
    खड़ी फसल मे 250 ग्राम बेविस्टीन +1.25 किलाग्राम इण्डोफिल एम-45 को 1000 लीटर पानी मे घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
    हिनोसान का छिड़काव भी किया जा सकता है। एक छिड़काव पौधशाला मे रोग देखते ही, तथा दो-तीन छिड़काव 10-15 दिनों के अन्तर पर बालियाँ निकलने तक करना चाहिए।
    बीम नामक दवा की 300 मिली ग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव किया जा सकता है।
    रोग रोधी किस्मों जैसे- आई आर 36, आई आर 64, पंकज, जमुना, सरजु 52, आकाशी और पंत धान 10 आदि को उगाना चाहिए।
    3. पर्णच्छंद अंगमारी/ सीथ/ बैण्डेड ब्लास्ट रोग/ आच्छंद झुलसा/ पर्ण झुलसा/ शीथ झुलसा/ आवरण झुलसा रोग (Sheath Blight)
    रोग नियंत्रण :-

    जेकेस्टीन या बेविस्टीन 2 किलोग्राम या इण्डोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी मे घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
    खड़ी फसल मे रोग के लक्षण दिखाई देते ही भेलीडा- माइसिन कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या प्रोपीकोनालोल 1 मि.ली. का 1.5-2 मिली प्रति लीटर पानी मे घोल बनाकर 10-15 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करें।
    धान के बीज को स्थूडोमोनारन फ्लोरेसेन्स की 1 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बुआई करें।
    घास तथा फसल अवशेषों को खेत मे जला देना चाहिए। गर्मी मे खेत की गहरी जुताई करें।
    प्रारम्भ मे खेत मे रोग से आक्रांत एक भी पौधा नजर आते ही काट कर निकाल दें।
    अधिक नेत्रजन एवं पोटाश का उपरिनिवेशन न करें।
    रोगरोधी किस्में जैसे- पंकज, सवर्नधान और मानसरोवर आदि को उगावें।
    अधिक जानकारी के लिए www.kisanhelp.in पर visit करें

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  2. अधिक जानकारी के लिए www.kisanhelp.in पर visit करें

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